Thursday, 8 September 2016

##क्या कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी है छात्र संघ चुनावों के परिणाम?##

क्या कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी है छात्र संघ चुनावों के परिणाम?

छात्र राजनीति से तप रहे उत्तराखंड के कॉलेजों में छात्र संघ चुनाव धीरे धीरे संपन्न हो रहें है। कॉलेज में नेतृत्व चुनने की ये परिपाटी सियासी गलियारों में खुलेआम न सही लेकिन दबी जुबान से बड़ा महत्व रखती है। साल दर साल कम छात्र संख्या वाले कॉलेजों में भले ही संगठनात्मक तरीके से चुनाव न लड़ा जाता हो लेकिन बड़े कॉलेजों में छात्र संगठन अपना प्रत्याशी घोषित कर इस महासंग्राम में भाग लेता है। और इसी महासंग्राम के जरिए तमाम राजनैतिक दलों को लेकर युवाशक्ति की विचारधारा का अंदाजा भी लगाया जा सकता है। माना जाता है कि छात्र संघ चुनावों में ABVP का प्रदर्शन अगर बेहतर रहा तो उससे बीजेपी को संजीवनी मिलती है तो वहीं अगर NSUI कॉलेजों की सत्ता पर काबिज हो जाए तो सत्ता पर काबिज हरीश रावत सरकार और उनके प्रयासों को विधानसभा चुनावों से पहले बल मिलेगा। लेकिन अगर इस बार के चुनावों के परिणामों की बात करें और ज्यादा दूर न जाते हुए केवल राजधानी दून के विश्वविद्यालों के छात्र संघ चुनावों पर नजर डाले तो इस बार चुनावी साल होने के कारण ये मुकाबला बेहद रोमांचक रहा।

राजधानी देहरा दून के कॉलेजों में सत्ताधारी पार्टी की छात्र ईकाइ NSUI की उम्मीदों को इस बार करारा झटका लगा है। छात्र संघ चुनावों के इस महामुकाबले में जहां इस बार बीजेपी की छात्र संघ ईकाइ ABVP जश्न में चूर है तो वहीं कांग्रेस की उम्मीदों को NSUI के खराब प्रदर्शन से झटका लगा है। जी हां...बात अगर सूबे के सबसे बड़े कॉलेज DAV(PG) कि की जाए तो यहां पर एक बार फिर ABVP इतिहास रचने में कामयाब रही। अध्यक्ष पद पर लगातार 10वीं बार ABVP ने जीत दर्ज की और पार्टी प्रत्याशी राहुल कुमार ने बागी संजय तोमर को 10 वोटों से शिकस्त दी। वहीं NSUI को इस पद पर तीसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा। ऐसे में कांग्रेस और उसकी छात्रसंघ ईकाइ NSUI के लिए DAV(PG) कॉलेज पिछले 10 सालों से किसी अभेद्य दुर्ग की तरह बनता जा रहा है।

वहीं अगर बात SGRR कॉलेज और एमकेपी कॉलेज कि, की जाए तो इन दोनों ही कॉलेजों में ABVP अपना परचम लहराने में कामयाब रही। पीछले साल जहां SGRR कॉलेज में NSUI ने अध्यक्ष पद पर जीत हासिल की थी तो वहीं इस बार ABVP  ने उससे अध्यक्ष पद छीन लिया है। वही एमकेपी कॉलेज में तो चुनाव पूरी तरह से ही ABVP के पक्ष में रहा और सभी पदों पर ABVP के प्रत्याशियों ने बाजी मार ली। अगर बात विकासनगर और डोईवाला की कि जाए तो वहां भी ABVP ने पूरे पैनल पर कब्जा कर जीत हासिल की है। शायद यही वजह है कि डीबीएस कॉलेज से ABVP को जो निराशा हाथ लगी है उसको लेकर पार्टी में ज्यादा निराशा नहीं है।
कहते है छात्र संघ चुनावों को विधानसभा चुनावों के दर्पण के तौर पर भी देखा जाता है। ऐसे में अपने मजबूत चुनाव प्रबंधन से जहां बीजेपी की ABVP को फिलहात राहत है तो वहीं सत्ता पर दोबारा से काबिज होने का सपना देख रही कांग्रेस के लिए राजधानी से आए छात्र संघ चुनावों के नतीजे किसी बड़े झटके से कम नहीं है। आम चुनाव हों या विधानसभा चुनाव....देखने को मिलता रहा है कि चुनावों में युवा शक्ति ही सबसे ज्यादा भागदौड़ करती है। ऐस में युवा वोटरों का बदलता रुझान सत्ता में काबिज होने के बावजूद कांग्रेस की ओर नहीं है। NSUI के खराब प्रदर्शन के बाद पार्टी दिग्गजों के लिए ये परिणाम किसी बड़े संकेत और संदेश है के साथ साथ खतरे की घंटी के बराबर है।

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