खूब छ्वी लगौला और सभी जन सरोकारों से जुडी खबर कु बारे मा चर्चा करला। अपर भुला कु मार्गदर्शन जरूर कार्लि यान उम्मीद च मिथे । धन्यखाल
Friday, 29 July 2016
Sunday, 24 July 2016
मुझको न भाये तेरी ‘गालियाँ'
बीजेपी के नेता दयाशंकर के द्वारा मायावती पर की गयी अभद्र टिप्पणी को लेकर यूपी में गालियो का घमासान शुरू हो गया है।
जी हां....बहनजी उर्फ बसपा सुप्रीमो मायावती को बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष दयाशंकर यादव ने अपशब्द कहे...जो बेहद निंदनीय है....और उनके मानसिक दिवालियापन की निशानी है.....लेकिन संसद से लेकर सड़क तक हंगामे का दौर तब शुरु हुआ जब माया के कार्यकर्ताओं ने भी उसी अभद्र भाषा का प्रयोग कर दयाशंकर से परिवार पर प्रहार करना शुरु कर दिया। बीजेपी ने दयाशंकर को पार्टी से निष्कासित कर अपना दायित्व पूरा किया तो कानून अपने स्तर से मामले पर अपना काम कर रहा है लेकिन इस सब के बीच जो शुरु हो चुकी है वो है राजनीति....
इस पूरे मामले को 2017 की तैयारियों के बीच एक पैराशूट मुद्दे की तरह हम देख सकते है। दयाशंकर द्वारा इस्तमाल की गई अभद्र भाषा जो बसपा के लिए बीजेपी को कठघरे में खड़ा करने का हथियार बन चुकी थी वहीं हथीयार अब बीजोपी बसपा के खिलाफ चलाने लगी है। बसपा दयाशंकर के कड़वे बोल का मुद्दा भुनाने में लगी है तो बीजेपी माया के उकसाने पर पार्टी कार्यकर्ताओं द्वारा अपनाए गए उसी रवैये को। यानी ये साफ है कि फिलहाल दोनों ही दलों को वो मुद्दा मिल गया है जिसके बल पर कम से कम चुनावी तैयारियों का आगाज तो धमाकेदार रहा,पर इस सब का जनता पर क्या असर होगा ये तो जनता अपने वोट की चोट से बताएगी की उनको क्या भाया????
Sunday, 10 July 2016
##नमामि गंगे ##
गंगा सफाई अभियान
सोशल साइट्स पे वायरल होता गंगा सफाई अभियान क लिए बना ## नमामि गंगे एंथम##
https://youtu.be/MxQG4HNYMTU
https://youtu.be/MxQG4HNYMTU
##तस्वीरें बोलती हैं##
हो सके तो लौट आ....
किसी ने सच कहा है कि तस्वीरें बोलती है पर आज जिस तस्वीर की बात हम कर रहें है वो सिर्फ बोलती ही नहीं है बल्कि अंदर तक दिल को झकझोर कर हजार तरह के सवालों को उठा रही है। एक ताले पर पनपती इस नई जिंदगी की तस्वीर इन दिनों सोशल मीडिया पर काफी छायी हुई है। शायद वो इस लिए क्योंकि इस तस्वीर की गहराई को हर वो इंसान महसूस सकता है,जिसने जिंदगी में कभी न कभी कठोर फैसले लिए हो या फिर कुछ पीछे छोड़ा हो। लेकिन वहीं दूसरी ओर कुदरत भी शायद इस तस्वीर के जरिए कुछ अपने ही लहजे में सकरात्मकता और अपनेपन का संदेश दे रही हो। ये तस्वीर है ही कुछ ऐसी कि हर किसी को अपनी ओर खीचने का दम रखती है और हर किसी के लिए अलग अलग मायने रखती है। इस तस्वीर को समझने वालों के हालात भले ही एक दूसरे से अगल हो लेकन जो कोई भी इस तस्वीर को समझ पाया होगा उसके जज्बात एक से जरुर रहें होंगे।
पलायन का दंक्ष भी कुछ ऐसा ही है। अकसर हालातों के आगे या आगे बढ़ने के फेर में जो अपनी जमीन से दूर हो जाता है वो चाह कर भी वापस अपनी उसी जिंदगी में लौट नहीं पाता। दो वक्त की रोटी के इंतजाम का सवाल हो या फिर शहरों की चकाचौंद को आजमाने की ख्वाहिश। इन दोनों ही हालातों में कई ऐसे परिवार हैं जो पलायन कर अपने आशियानों पर ताला जड़ कहीं और बस गई है। उत्तराखंड समेत देश के कई हिस्से ऐसे है जहां लोगों को अपनी आबोहवा को छोड़ नई बसेरे की ओर बढ़ना पड़ा। परिस्थितियों या महत्वकांक्षाओं की भेंट चढ़े ऐसे तमाम घर हैं जहां लगा ये ताले पीड़ा के साथ साथ परिश्रम और जरुरतों की कहानियां बयां करता है। पर उसी ताले पर सांस लेती एक खूबसूरत सी जिंदगी मानों कुदरत के मन की भावनाओं को बयां कर रही है। बिन माटी पनपती ये जिंदगी कुदरत के उस इशारे को समझाने की कोशिश है कि इस दुनियां में चाहे इंसान किसी भी तरह का व्यवहार कर परिस्थितियों के हिसाब से खुद को बदल कर बेगाना हो जाए लेकिन कुदरत आज भी बाहें फैलाए उसकों फिर से अपनाने को तैयार रहती है। वो घर फिर से गुलजार हो या न हो लेकिन उस घर पर लगे ताले पर बढ़ती जिंदगी ये उम्मीद देती है कि सब ठीक है...सब अच्छा है....और इसी ताले पर पड़ती सूरज की वो चमचमाती किरणे इसी उम्मीद को और भी ज्यादा बल देती है कि अगर आप एक कदम बढ़ाओगे तो प्रकृति आपके इरादों को ताकत देगी ।
शायद जिस बात को इंसानों ने समझने में कमी कर दी वहीं बात इस तस्वीर ने बड़ी गहराई से समझाई है। मिलना बिछड़ना तो रिवाज सा बन गया है जिंदगी में...लेकिन बिछड़ने के बावजूद भी बहुत जुड़ा है ये सिखाया है इस तस्वीर ने। वापस लौटने की उम्मीद को फिर से जगाया है इस तस्वीर ने...तो अपनी मिट्टी की अहमियत को भी समझाया है इस तस्वीर ने। क्या पता वो मिट्टी आप से भी ज्यादा आपकों याद करती हो। काश की इस तस्वीर का संदेश समझ कर एक बार नही हम हजार ऐसी कोशिशें करे की जो घर, जो मिट्टी, जो आबोहवा और जिन अपनों को हम कोसो दूर छोड़ आये हैं उनके पास कभी न कभी लौट सकें। और जो छुट गया है उसे समेट सकें।
Tuesday, 5 July 2016
##उपनल ##का उपाय???
उपनल का उपाय???
कई दिनों से अपने नियमितीकरण की मांग को लेकर उपनल कर्मचारी धरने पर बैठे हैं ,और अब मांगे न माने जाने तक उन्होंने अनशन पर बैठने का निर्णय लिया है। मुख्यमंत्री से उपनल का प्रतिनिधिमंडल मिला भी पर कोई बात नहीं बनी, हाँ सीएम साहब ने वेतन वृद्धि पर विचार करने का आश्वासन जरूर दिया पर कर्मचारी संतुष्ट नै हुए और अनशन शुरू कर दिया। खैर अभी इसका हल निकलता नज़र नहीं आ रहा है।
क्योंकि इस मुद्दे का राजनीतिकरण हो चूका है। यहाँ तक कहा जा रहा है की,उपनल का ये धरना किसी पार्टी विशेष या किसी नेता के द्वारा प्रायोजित है । हालाँकि उपनल कर्मचारी इसे सिरे से खारिज कर रहे हैं उनका साफ़ साफ़ कहना है की हम सरकार के कर्मचारी हैं और सरकार के आगे अपनी मांग रख रहे हैं । लेकिन सरकार द्वारा नकारात्मक रुख दिखने के बाद अब उपनल कर्मचारियों ने धरना स्थल पर राजनेताओ को मंच पर स्थान दे दिया है,आज इसी कड़ी में हरक सिंह रावत भी धरना स्थल पहुंचे और अपना समर्थन दिया।
अब इस मुद्दे पर धीरे धीरे राजनीती गरमाती जायेगी, पर इस राजनीति की गर्मी में कही उपनल कर्मियो का आंदोलन के साथ साथ उत्तराखंड का विकास न झुलस जाये,क्योंकि उपनल से विभिन्न विभागों में लगभग 20,000 कर्मचारी हैं जिनके हड़ताल पर जाने से व्यवस्थाएं चरमरा रही हैं,जिसका सीधा नुक्सान उत्तराखंड की जनता को उठाना पड़ रहा है इसलिए इसे राजनीति का अखाडा न बनाकर अगर इसका उपाय निकाला जाए,तो वो प्रदेश व जनहित में होगा।
उम्मीद है की सरकार इसका जल्द ही कोई उपाय निकालेगी।
कई दिनों से अपने नियमितीकरण की मांग को लेकर उपनल कर्मचारी धरने पर बैठे हैं ,और अब मांगे न माने जाने तक उन्होंने अनशन पर बैठने का निर्णय लिया है। मुख्यमंत्री से उपनल का प्रतिनिधिमंडल मिला भी पर कोई बात नहीं बनी, हाँ सीएम साहब ने वेतन वृद्धि पर विचार करने का आश्वासन जरूर दिया पर कर्मचारी संतुष्ट नै हुए और अनशन शुरू कर दिया। खैर अभी इसका हल निकलता नज़र नहीं आ रहा है।
क्योंकि इस मुद्दे का राजनीतिकरण हो चूका है। यहाँ तक कहा जा रहा है की,उपनल का ये धरना किसी पार्टी विशेष या किसी नेता के द्वारा प्रायोजित है । हालाँकि उपनल कर्मचारी इसे सिरे से खारिज कर रहे हैं उनका साफ़ साफ़ कहना है की हम सरकार के कर्मचारी हैं और सरकार के आगे अपनी मांग रख रहे हैं । लेकिन सरकार द्वारा नकारात्मक रुख दिखने के बाद अब उपनल कर्मचारियों ने धरना स्थल पर राजनेताओ को मंच पर स्थान दे दिया है,आज इसी कड़ी में हरक सिंह रावत भी धरना स्थल पहुंचे और अपना समर्थन दिया।
अब इस मुद्दे पर धीरे धीरे राजनीती गरमाती जायेगी, पर इस राजनीति की गर्मी में कही उपनल कर्मियो का आंदोलन के साथ साथ उत्तराखंड का विकास न झुलस जाये,क्योंकि उपनल से विभिन्न विभागों में लगभग 20,000 कर्मचारी हैं जिनके हड़ताल पर जाने से व्यवस्थाएं चरमरा रही हैं,जिसका सीधा नुक्सान उत्तराखंड की जनता को उठाना पड़ रहा है इसलिए इसे राजनीति का अखाडा न बनाकर अगर इसका उपाय निकाला जाए,तो वो प्रदेश व जनहित में होगा।
उम्मीद है की सरकार इसका जल्द ही कोई उपाय निकालेगी।
Sunday, 3 July 2016
Saturday, 2 July 2016
Friday, 1 July 2016
##सौणा का मैना##... #ब्वे कणुके रैणा#...
सौणा का मैना... ब्वे कणुके रैणा...
बहुत ही पुराणु गांणु च की , सौणा का मैना... ब्वे कणुके रैणा...कुयेड़ि लागली..
आज वाक़ई उ हालात पैदा ह्वे गैनी पहाड़ माँ
अभी मानसून आई द्वी दिन भी नी बीती और जग जगा ..आपदा जनि स्थिति पैदा ह्वे गैनी.. नदी नाला उफान पर ऐ गैनी। ता कखि स्लैब ऐ गेन।लोग डरणा लगि छान...कुछ गाँव टापू मा तब्दील ह्वे गेन। बड़ी बुरी स्थिति च पर ...???

हमारी सरकार वादा दावा भी कनि रैंदी की सबकुछ ठीक कर याली या काना छा ।पर ज्वा स्थिति अभी च वींते देखिकी,सरकार आर आपदा प्रबंधन की पोल खुलूँनु च। अभी जू भी आर जक बटिकि भी खबर आणि च की वे देखिकी इ लगणु की जू लोग अभी वख वीं आपदा माँ फँसी छान उंके गिचि और मन माँ बीएस यु ही आना होलु की सोणा का मैना ब्वे कणुके रैणा.....
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