हो सके तो लौट आ....
किसी ने सच कहा है कि तस्वीरें बोलती है पर आज जिस तस्वीर की बात हम कर रहें है वो सिर्फ बोलती ही नहीं है बल्कि अंदर तक दिल को झकझोर कर हजार तरह के सवालों को उठा रही है। एक ताले पर पनपती इस नई जिंदगी की तस्वीर इन दिनों सोशल मीडिया पर काफी छायी हुई है। शायद वो इस लिए क्योंकि इस तस्वीर की गहराई को हर वो इंसान महसूस सकता है,जिसने जिंदगी में कभी न कभी कठोर फैसले लिए हो या फिर कुछ पीछे छोड़ा हो। लेकिन वहीं दूसरी ओर कुदरत भी शायद इस तस्वीर के जरिए कुछ अपने ही लहजे में सकरात्मकता और अपनेपन का संदेश दे रही हो। ये तस्वीर है ही कुछ ऐसी कि हर किसी को अपनी ओर खीचने का दम रखती है और हर किसी के लिए अलग अलग मायने रखती है। इस तस्वीर को समझने वालों के हालात भले ही एक दूसरे से अगल हो लेकन जो कोई भी इस तस्वीर को समझ पाया होगा उसके जज्बात एक से जरुर रहें होंगे।
पलायन का दंक्ष भी कुछ ऐसा ही है। अकसर हालातों के आगे या आगे बढ़ने के फेर में जो अपनी जमीन से दूर हो जाता है वो चाह कर भी वापस अपनी उसी जिंदगी में लौट नहीं पाता। दो वक्त की रोटी के इंतजाम का सवाल हो या फिर शहरों की चकाचौंद को आजमाने की ख्वाहिश। इन दोनों ही हालातों में कई ऐसे परिवार हैं जो पलायन कर अपने आशियानों पर ताला जड़ कहीं और बस गई है। उत्तराखंड समेत देश के कई हिस्से ऐसे है जहां लोगों को अपनी आबोहवा को छोड़ नई बसेरे की ओर बढ़ना पड़ा। परिस्थितियों या महत्वकांक्षाओं की भेंट चढ़े ऐसे तमाम घर हैं जहां लगा ये ताले पीड़ा के साथ साथ परिश्रम और जरुरतों की कहानियां बयां करता है। पर उसी ताले पर सांस लेती एक खूबसूरत सी जिंदगी मानों कुदरत के मन की भावनाओं को बयां कर रही है। बिन माटी पनपती ये जिंदगी कुदरत के उस इशारे को समझाने की कोशिश है कि इस दुनियां में चाहे इंसान किसी भी तरह का व्यवहार कर परिस्थितियों के हिसाब से खुद को बदल कर बेगाना हो जाए लेकिन कुदरत आज भी बाहें फैलाए उसकों फिर से अपनाने को तैयार रहती है। वो घर फिर से गुलजार हो या न हो लेकिन उस घर पर लगे ताले पर बढ़ती जिंदगी ये उम्मीद देती है कि सब ठीक है...सब अच्छा है....और इसी ताले पर पड़ती सूरज की वो चमचमाती किरणे इसी उम्मीद को और भी ज्यादा बल देती है कि अगर आप एक कदम बढ़ाओगे तो प्रकृति आपके इरादों को ताकत देगी ।
शायद जिस बात को इंसानों ने समझने में कमी कर दी वहीं बात इस तस्वीर ने बड़ी गहराई से समझाई है। मिलना बिछड़ना तो रिवाज सा बन गया है जिंदगी में...लेकिन बिछड़ने के बावजूद भी बहुत जुड़ा है ये सिखाया है इस तस्वीर ने। वापस लौटने की उम्मीद को फिर से जगाया है इस तस्वीर ने...तो अपनी मिट्टी की अहमियत को भी समझाया है इस तस्वीर ने। क्या पता वो मिट्टी आप से भी ज्यादा आपकों याद करती हो। काश की इस तस्वीर का संदेश समझ कर एक बार नही हम हजार ऐसी कोशिशें करे की जो घर, जो मिट्टी, जो आबोहवा और जिन अपनों को हम कोसो दूर छोड़ आये हैं उनके पास कभी न कभी लौट सकें। और जो छुट गया है उसे समेट सकें।
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