बजट पर रार...बरकरार
प्रदेश का सियासी संकट तो किसी तरह से निपट गया लेकिन इस सियासी संकट से उपजे वित्तीय संकट के बादल अभी छटते नजर नहीं आ रहें है। आलम ये है कि प्रदेश में वित्तीय संकट गहराता जा रहा है और राष्ट्रपति शासन के खिलाफ कोर्ट में लगभग 53 दिन की लड़ाई जीतने के बाद अब राज्य सरकार इस उपजे संकट को लेकर भी आर पार की लड़ाई के मूड में है। 30 जून तक अगर सरकार बजट का इंतजाम नहीं करती है तो हालात बेकाबू होना तय है। ऐसा इसलिए क्योकि राज्य कर्मचारियों का वेतन, पेंशन समेत तमाम ऐसे खर्चे है जो राज्य सरकार की गले की फांस बनते जा रहें है। हालाकि इन खर्चों के लिए फिलहाल राज्य सरकार ने बाजार से कुछ पैसा उठाकर पूर्ति करने की कोशिश तो की है लेकिन ये इंतजाम भी अब ज्यादा दिन ठीकने वाला नहीं है।
दरअसल सियासी संकट के बाद राज्य का वित्तीय बजट पारित नहीं माना गया था लिहाजा केंद्र ने राज्य को चार महीनों का लेखानुदान कुल 13 हजार 642 करोड़ दिया था जो की जुलाई माह तक के लिए है। लेकिन ये धनराशि राज्य के तमाम खर्चों के साथ साथ सरकार की तमाम विकासकारी योजनाओं और तमाम घोषणाओं का सपना कैसा पूरा करें ये सवाल अब दिन ब दिन बड़ा होता जा रहा है।
वहीं इस संकट से उबरने के लिए राज्य सरकार के पास केवल तीन ही रास्ते बचे हैं। पहला- केंद्र से और पैसा पारित करने की गुहार लगाना। दूसरा- केंद्र की मनमानी के खिलाफ कोर्ट का रुख करना। और तीसरा- खुद बजट सत्र आहूत कर सदन में बजट पेश कर उसे पारित कराना। पहले विकल्प का प्रयोग तो राज्य सरकार लगातार करती ही आ रही है लेकिन दूसरे विकल्प यानि कोर्ट का दरवाजा खटखटाने और सियासी संकट के चलते कोर्ट के तमाम चक्कर काटने के बाद राज्य सरकार ने मानो काफी सोच समझ कर तीसरे विकल्प की ओर कदम बढ़ाया है।
सरकार ने विनियोग विधेयक को पारित करने के लिए आने वाली चार और पांच जुलाई को विधानसभा का विषेश बजट सत्र बुलाया गया है जिसमें विनियोग विधेयक को पारित करना सरकार की बड़ी चुनौतियों में से एक होगा। वो इसलिए भी क्योकि नए सिरे से सदन के पटल पर विधेयक को रखना सरकार को एक बार फिर से मत विभाजन की स्थिति में डाल सकता है। ऐसे में ऐसी तमाम संभावनाओं से बचने और अपनों की बगावत के बाद मुख्यमंत्री हरीश रावत इस वक्त हर कदम फूक फूक कर जरुर रख रहें होंगे।
बीते 53 दिनों के घटनाक्रम में कहीं न कहीं मात खाने के बाद अब केंद्र एक बार फिर राज्य सरकार को घेरने की कोशिशों में जुटा है। शायद यही राजनीति है जिसमें सरकार बनान सरकार के खेल में आम जनता का ही नूकसान होता है। जहां इस खेल में जीतना केंद्र की साख और नाक का सवाल है तो वहीं चुनावों से ठीक 6 महीने पहले राज्य सरकार के हाथ पांव बंधे होने से राज्य सरकार का बौखलाना भी जायज है।
प्रदेश का सियासी संकट तो किसी तरह से निपट गया लेकिन इस सियासी संकट से उपजे वित्तीय संकट के बादल अभी छटते नजर नहीं आ रहें है। आलम ये है कि प्रदेश में वित्तीय संकट गहराता जा रहा है और राष्ट्रपति शासन के खिलाफ कोर्ट में लगभग 53 दिन की लड़ाई जीतने के बाद अब राज्य सरकार इस उपजे संकट को लेकर भी आर पार की लड़ाई के मूड में है। 30 जून तक अगर सरकार बजट का इंतजाम नहीं करती है तो हालात बेकाबू होना तय है। ऐसा इसलिए क्योकि राज्य कर्मचारियों का वेतन, पेंशन समेत तमाम ऐसे खर्चे है जो राज्य सरकार की गले की फांस बनते जा रहें है। हालाकि इन खर्चों के लिए फिलहाल राज्य सरकार ने बाजार से कुछ पैसा उठाकर पूर्ति करने की कोशिश तो की है लेकिन ये इंतजाम भी अब ज्यादा दिन ठीकने वाला नहीं है।
दरअसल सियासी संकट के बाद राज्य का वित्तीय बजट पारित नहीं माना गया था लिहाजा केंद्र ने राज्य को चार महीनों का लेखानुदान कुल 13 हजार 642 करोड़ दिया था जो की जुलाई माह तक के लिए है। लेकिन ये धनराशि राज्य के तमाम खर्चों के साथ साथ सरकार की तमाम विकासकारी योजनाओं और तमाम घोषणाओं का सपना कैसा पूरा करें ये सवाल अब दिन ब दिन बड़ा होता जा रहा है।
वहीं इस संकट से उबरने के लिए राज्य सरकार के पास केवल तीन ही रास्ते बचे हैं। पहला- केंद्र से और पैसा पारित करने की गुहार लगाना। दूसरा- केंद्र की मनमानी के खिलाफ कोर्ट का रुख करना। और तीसरा- खुद बजट सत्र आहूत कर सदन में बजट पेश कर उसे पारित कराना। पहले विकल्प का प्रयोग तो राज्य सरकार लगातार करती ही आ रही है लेकिन दूसरे विकल्प यानि कोर्ट का दरवाजा खटखटाने और सियासी संकट के चलते कोर्ट के तमाम चक्कर काटने के बाद राज्य सरकार ने मानो काफी सोच समझ कर तीसरे विकल्प की ओर कदम बढ़ाया है।
सरकार ने विनियोग विधेयक को पारित करने के लिए आने वाली चार और पांच जुलाई को विधानसभा का विषेश बजट सत्र बुलाया गया है जिसमें विनियोग विधेयक को पारित करना सरकार की बड़ी चुनौतियों में से एक होगा। वो इसलिए भी क्योकि नए सिरे से सदन के पटल पर विधेयक को रखना सरकार को एक बार फिर से मत विभाजन की स्थिति में डाल सकता है। ऐसे में ऐसी तमाम संभावनाओं से बचने और अपनों की बगावत के बाद मुख्यमंत्री हरीश रावत इस वक्त हर कदम फूक फूक कर जरुर रख रहें होंगे।
बीते 53 दिनों के घटनाक्रम में कहीं न कहीं मात खाने के बाद अब केंद्र एक बार फिर राज्य सरकार को घेरने की कोशिशों में जुटा है। शायद यही राजनीति है जिसमें सरकार बनान सरकार के खेल में आम जनता का ही नूकसान होता है। जहां इस खेल में जीतना केंद्र की साख और नाक का सवाल है तो वहीं चुनावों से ठीक 6 महीने पहले राज्य सरकार के हाथ पांव बंधे होने से राज्य सरकार का बौखलाना भी जायज है।
No comments:
Post a Comment